बसंत पंचमी
बसंत ऋतु का
आगमन , ऋतुओं के राजा बसंत ऋतु के आते ही सारी प्रकृति मानो नृत्य करने लगती है ।नई
कोंपलें फुटने लगती है, आम्र वृक्ष में बौर आने लगते है,पुराने पत्तों का झरना, नये
पत्तो का आना , कोयल का कुकना , सब कुछ देखकर मन मयुर नृत्य करने लगता है । जब पुष्प
आने से पहले उसमें कोंपल फुटती है , वह आपसे पुछती है कि क्या मै आऊँ? उसी प्रकार आपके
ह्रदय में भी इच्छा अपने आप जाग्रत होती है-मै भी प्रकृति के साथ –साथ नाचूँ, गाऊँ ।
बसंत पंचमी वाणी की देवी सरस्वती जी की आराधना का दिन है , माँ सरस्वती की पूजा अर्चना कर , उनकी प्रार्थना की जाती है –
या कुन्देनदुतुषारहार धवला, या शुभ्रवस्त्रान्वता ।
या वीणावर दण्डमण्डितकरा , या श्वेतपद्मासना
।
या ब्रह्माच्युतशंकर प्रभृतिभि; देवै;
सदा वन्दिता,
सा माम् पातु सरस्वती भगवती नि;शेषजाड्यापहा।
ऊँ वीणापुस्तक धारिण्यै श्री सरस्वत्यै नमः ।
हे सरस्वती हमारी वाणी को शक्ति प्रदान करे , वाणी
में मधुरता प्रदान करे, वाणी में संयम प्रदान करें, शुद्धता प्रदान करें, तथा अनजाने
में भी कोई अशुद्ध वाक्य मुँह से न निकले ।
है सरस्वती
देवी आपसे हाथ जोड़कर प्रार्थना करती हूँ ।कृपया मेरी प्रार्थना को स्वीकार करें ।मुझे
सद् बुद्धि प्रदान करें ।
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